खड़े थे कई बच्चे
तितर-बितर।
नहीं था पानी
बिजली नहीं थी।
कीचड़ था।
आँधी चलती थी।
बूँदें गिरती थीं।
रोती थीं कविता
की दुनिया में -
रात की नदियाँ।
घोंसले बनते थे
उजड़ते थे -
स्त्रियाँ लाती थीं
मीलों दूर से
भरकर घड़े।
बच्चियाँ माँजती थीं
सुबह से रात तक
बर्तन
दूसरों के।
आती-जाती थीं ट्रेनें।
नीम और पीपल थे -
कहानियाँ थीं
उनकी हजारों-हजार।
कोहराम थे।
खोए जाते थे
माता-पिता।
बैठे थे
गुमशुदा बच्चे,
चुपचाप।